बालक बीरू का राजा को श्राप
राजा और राज-परिवार के लोग भी अपनी आँखों से यह चमत्कार देखने आये
राजा की ख़ुशी का कोई पारावार न रहा
तब बालक बीरू ने क्रोध से भरकर राजा से कहा-
"हे राजा ! तुने दोलत के सहारे एक निष्कपट और बे-कसूर बालक की बलि देने का जो षड्यंत रचा है,
उसके लिए में तुम्हे श्राप देता हूँ कि तू जम्मू राज्य में किसी भी कुए ,सोते,तालाब या नदी का जल पिएगा-
तुझे उसी समय कोढ़ पड़ जायेगा
जो व्यक्ति ब्रह्म-रक्त से मिश्रित इस जल को पिएगा-
उसकी आने वाली पीढ़िया भी दरिद्र और निर्धन होंगी"
यह घोर श्राप देकर बालक बीरू कुएं से दूर चल पड़ा
दरबारियों ने इस श्राप के प्रभाव को खंडित करने के लिए
राजा को सलाह दी की आप ब्राह्मण बालक के पास जाकर
उससे क्षमा मांगे और उसे क्रोध छोड़कर अपने संग भोजन
करने के लिए आमंत्रित करें उसे अपने घर बापिस जाने को कहें
करने के लिए आमंत्रित करें उसे अपने घर बापिस जाने को कहें
बाबा विरफा नाथ जी का मंदिर ( जन्मस्थान) वीरपुर
तहसील साम्बा के गांव वीरपुर में बाबा जी का
एक देव स्थान हुआ करता था|
सन् 2007 में वहां मंदिर का निर्माण किया गया |
उस मंदिर में बाबा जी के बहुत पुराने मोहरे रखे गए हैं वहां पर चिमटा, खड़ामा,कमण्डल,फोड़ी आदि रखी गई है |
मंदिर का क्षेत्रफल लगभग 31/2 कनाल बताया जाता है और कहा जाता है जिस स्थान पर बाबा जी का मंदिर है उसी स्थान पर बाबा जी का घर हुआ करता था |
मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूर बलोल खण्ड है जहाँ पर बाबा विरफा नाथ जी छोटी – छोटी बछड़ियो और गाय को चराने जाते थें |
मंदिर के पास ही सुरगल बाबा जी की बहुत बड़ी वर्मी है |
जो संगत बाबा जी के दरवार आती है,वह वर्मी पर भी माथा टेकती है | श्री संजीव शर्मा जी इस मंदिर में पूजा पाठ करते है|
वर्ष में जहाँ पर दो बार भंडारा होता है और जो लोग बाबा जी के दरवार मैं श्रद्धापूर्वक आते है उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है|
बीरू का बाहवा नगरी लाया जाना
सैनिकों का दल बीरू को बलि-पात्र के तौर
पर खरीद कर जम्मू की "बाहवा नगरी" में ले आया। राजा के सामने पेश किए
जाने पर राजा और उसके दरबारियों ने परखा कि यह बालक त्रिड्डू चेले की कसौटी पर
पूरा उतरता है अथवा नहीं। छान-बीन के बाद पाया गया कि इसमे बलि दिए जाने के संबंधी
समस्त लक्षण पूर्ण हैं।
बलि अमावस्या की रात को दी जानी थी।
अमावस्या को अभी दस दिन शेष थे। इसलिए बालक को तवी तट के पास पहाड़ी के निकट बनाई
गई कुटिया में ठहराया गया। उसकी निगरानी और देख-भाल के लिए चार सैनिकों को तैनात
किया गया। दो सैनिक दिन के समय और दो रात को बालक पर निगाह रखते। राज-महलों से इस
बन्दी बालक के लिए राजसी खाद्य वस्तुएं लाई गई। परंतु, बालक ने उनकी ओर
देखा तक नहीं।
मृतात्मओं की मुक्ति और बिरफानाथ
के पास "गोरख-टिल्ला " पहँचे । उनकी वहां आते ही गुरुदेव ने कहा -"हे
बिरफा ! तूझे हमने क्लालीन को रास्ते पर
लाने का आदेश दिया था । "
उनके इतना कहते ही बिरफानाथ जान गए कि गुरुदेव जो जानी -जान हैं
पहले से ही तमाम घटना की जानकारी हैं ।
बिरफानाथ कहा - "गुरुदेव कलाली का टिब्बा तो नास्तिकों का गढ़ बन चूका
था। "
गोरखनाथ -
"यदि किसी जगह नास्तिकों की सँख्या बढ़ जाए तो उसे क्या पूरी
तरह नस्ट करना उचित है ?"
बिरफानाथ - "गुरुदेव! वह
दुष्ट,मुझ को बुरा
-भला कहती तो में सह लेता । जब वह मेरे गुरु की शान में अपशब्द बोलने लगी तो उसके
दुवर्चन मुझ से सहन न हुए । "
गोरखनाथ -"तुझे जब
दीक्षा दी थी तोह सबसे पहले यही कहा था कि सत्य और सहनशीलता का जल चढ़ाने से
जोगमार्ग का पेड़ खूब फलता - फूलता है । "
बिरफानाथ -"गिरुदेव ! वह
दुष्ट जोग - मार्ग को भी गालियां देती थी । वह भोग - मार्ग की प्रशंसकी थी । आपके
इस तुच्छसाधु को भोगवाद और काम की और मोड़ना चाहती थी ।
वह तमाम
नाथों को मार्ग़ से भटके हुए लोग बतलाती थी ।"
गोरखनाथ - "किसी के
विचार हम से भिन्न होंगे उससे बातचीत करके रास्ते पर लाएंगे कि उसे मार ही
डालेगे। "
बिरफानाथ चुप हो गए
गुरु गोरखनाथ बोले -" किसी को बुरे
दण्ड देने का अधिकार उसकी पास है जिसने सृष्टि रचना की है
। जो जन्म देता है उसी ईश्वर के पास मारने का अधिकार भी है ।
साधु - सन्यासी ऐसा करने लगेंगे तोह उनके तपोबल का ह्नास होगा । अगला जन्म
बिगड़ जायेगा । "
बिरफानाथ ने गुरुदेव के पांव पकड़ लिए और कहा -"गुरुदेव ,मेरी भूल
बख्स दीजिये । "
गोरखनाथ कुछ समय के लिए समाधी की दशा में चले गए । फिर
बिरफानाथ से पूछा -"तुम क्या इसी तबाही और बर्बादी की ख़बर देने आये हो ?"
बिरफानाथ -"गुरुदेव !
मैं तो यह कहने आया था की आपका पहला आदेश मैं पूरा क्र चूका हूँ । मेरे लिए आगे
क्या आदेश है ? "
गोरखनाथ - "दूसरा आदेश
यही है कि तुम उसी नगर को वापस जाओ जहाँ से तुम आए हो ।"
बिरफानाथ ने हाथ जोड़ दिए -"हे महानाथ ,मेरी भूल - चूक क्षमा हो । मुझे
अपने चरणों में रहने की आज्ञा दीजिये ।मुझे अपने से दूर मत कीजिये । "
गोरखनाथ बोले - "हे बिरफा ,जिस नगर को तूने तपोबल का
प्रयोग करके उल्टा क्र दिया । वहां के दोषी और निर्दोष दोनों प्रकार के लोग अकाल -
मृत्यु को प्राप्त हुए । उनकी आत्माएं पाताल में
फ़सी हुयी है । वहां उन्हें पाताल के राजा शेषनाग ने बंदी बना रखा है ।कारण कि
मानव जाति या उसकी प्रेतात्माओं का पाताल में प्रवेश निषिद्द है । आपके
द्वारा इस नगर को गर्क करने से
ईश्वर की इच्छा का उलंघन हो रहा है,क्योकि भाग्य
- विधाता ने उनकी किस्मत में पाताल की कैद नही लिखी थी । अपने योग-बल से ऐसा करके तुमने
उन लोगों के भाग्य की लिपि को बदल दिया है ।
यह विधि के विधान का घोर उलंघन है । इसलिए ,तुम्हें वहां जाकर तप करना है ।
श्मशान हो चुके उस नगर में धुना रमा कर जीवन की ज्योति को जाग्रत करना है । वहाँ
रह क्र वे तमाम उपाय करने
हैं जिन से पाताल में बंदी पड़ी प्रेतात्माओं की मुक्ति हो । "
बिरफानाथ ने गुरुदेव
के चरणों में सीस झुका दिया । फिर पूछा -"कोई और आदेश गुरुदेव । "
गोरखनाथ -"आपने भूलवश
जो घोर पाप कमाया है ,उससे आपकी
मुक्ति तभी होगी -जब पाताल की तमाम प्रेतात्माएं मुक्ति पा लेंगी ।
उनकी मुक्ति
होने तक आप कलाली का टिब्बा क्षेत्र को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे । "
पास में बैठे कपला पीर बोले -"बिरफा जी ,आयु में युवा हैं ।
घूमते-घामते कहीं और जा पुहचे और वहां किसी बात पर इन्हें क्रोध आ गया तो क्या
जाने कितने और नगर गर्क क्र दें । "
बिरफानाथ -"ऐसा नहीं
होगा हे ,महामुनि । "
कपला पीर -"तुम्हारा दोष
नहीं है ,हे बिरफानाथ
जी । तुम जिस भूमि
जनमे हो - वह वीरों की भूमि है ।
अपनी आन -बान
और इज्ज़त के लिए वहां के युवा लोग मरने - मारने को उतावले हो उठते हैं । "
गोरखनाथ -"जिन लोगों की
आराध्या शक्ति है वे साधु - सन्यासी बनने पर भी अपने क्रोध पर काबू नहीं पा सकते। शक्ति - पूजा का जितना प्रचलन
बिरफानाथ के मद्रदेश में है उतना और कहां ? "
कपला पीर -"शक्ति के
तमाम रूप अपनी - अपनी ऋद्धि -सिद्धियों सहित डुग्गर पहाड़ों पर विराज रहे हैं ।
उन्हीं के प्रभाववश बिरफा जी ने क्लालीन का नगर गर्क कर दिया । "
बिरफानाथ -"हे गुरुदेव
!आप सर्वज्ञ हैं ,मैं अज्ञानी
हूं। आप सच्चे मार्ग -दर्शक है मैं मार्ग से भटक गया हूं । आप जैसा ऊचित समझे
बतलायें - मैं पूर्ण पश्चताप करूंगा । "
गोरखनाथ -"बेटा बिरफा
!तुम्हें पाप की भूमि को नव -खंड पुण्य -भूमि में बदलना है । वहां सदा के लिए
नाथों का ध्वजा को फहराना है । इसलिए ,तुम्हें वहीँ रहते हुए समाधि
लेनी है । "
जब बिरफानाथ जी टिल्ले से गुरु गोरखनाथ की आज्ञा पाकर कलाली के टिब्बे की और
चले तो कपिला पीर उनके संग दो अनुभवी नाथ भी भेज दिए ताकि कब किया करना है
-इसका
स्मरण बिरफानाथ कराते रहें और किसी गलत निर्णेय पर उन्हें सचेत करें ।
राजा बीरमदेव की पुत्र प्राप्ति की आशा
आज से लगभग 550 वर्ष पूर्व
बाहवा और जम्मू की रियासत पर राजा बीरमदेव राज्य करता था। वैसे तो सब प्रकार के
सुख और ऐश्वर्य उसके पास थे, किन्तु उसके हां संतान न थी। इस कारण से वह सदा चिंता में डूबा रहता । राज
दरबार में बैठे हुए उसका मन राज-काज में न लगता। उधर महलों में उसकी रानी चिंता
में डूबी रहती।
राजा को उसके सलाहकारों ने परामर्श दिया कि यदि इस कढ़ी क्षेत्र के लोगों के
भले के लिए एक कुआं खुदवाया जाए तो उसके पूण्य से उसके घर में अवश्य ही पुत्र जन्म
लेगा। राजा ने ऐसा ही किया। कई कामगार और श्रमिक कुएं की खुदाई पर लगा दिए गए।
काफी गहरा खोदने पर भी पानी का नाम-निशान न मिला। इससे राजा की पुण्य कमाने की
लालसा पर पानी फिर गया।
राजा को निराश देख कर उसके मंत्रियों ने "फिड्डू" नामक चेला को तलब
किया। राजा ने उसे पूछा कि अपने शास्त्रों को देखकर बतलाओ कि पानी किस कारण से रुका
है। कहां क्या खराबी हैं ?"
"फिड्डू नामक
चेला ने अपनी गणना करके कहा--"महाराज, नीचे पाताल में पानी के मंबे पर
एक राक्षस बैठा हुआ है, जिसने कि
पानी रोके रखा है।"
चिंतित राजा ने पूछा-"इसका कोई उपाय भी है कि नहीं?"
फिड्डू - "उपाय है, मगर बड़ा विषम है। पानी रोक कर बैठा हुआ राक्षस बहुत भारी बलि मांग रहा है। वह
मुर्गे या बकरी की बलि से जल का रास्ता नहीं छोड़ेगा। वह मानस-बलि मतलब मानव की बलि
चाहता है। बलि भी किसी साधारण और छोटी जाति के व्यक्ति की नहीं, बल्कि किसी
निर्दोष शरीर वाले गोरे रंग , भूरे रोये और बालों वाले ब्राह्मण बालक की दी जानी चाहिए, तभी कुएं में
जल उमड़ेगा।"
राजा तो संतान प्राप्ति के लोभ में कुछ भी करने को तैयार था, किन्तु महलों
में रानी इस बात पर उद्विग्न हो उठी कि पूण्य कमाने के लिए कुआं खुदवाते हुए, इस काम में
बनी अड़चन को दूर करने के लिए हमें ब्रह्म-हत्या जैसा घोर पाप करना पड़ेगा।
विपत्ति के समय गुरु गोरखनाथ का स्मरण
बालक बीरू को स्मरण आया कि कुछ
माह पहले उसने चमत्कारी गुरु गोरखनाथ की सेवा की थी ।
उन्हें जब उसने एक कमंडल भर दूध पिलाया
था तो उन्होंने खुश होकर कहा था -"बच्चा ,यह दूध
हम पर तेरा उधर रहा । कभी विकट
विपत्ति बने या घोर संकट आए - हमें स्मरण करना और बिना
हिम्मत हारे हमारे नाम का जप करना - हम
तेरी चेतना में समस्या का समाधान जगाएंगे । तुझ पर
गुरु किरपा होगी । तेरे में अलौकिक
शक्तियां चली आएगी । तेरे मुख से जो शब्द निकलेगे उन्हें
विधाता भी झुठला न सकेगा । तेरे मुख से
ज्ञानियों जैसे शब्द निकलेगे। जिसे तू सराहेगा - वह तर
जायेगा , जिसे तू श्राप
देगा वह डूब जायेगा । इतना स्मरण आते ही बालक बीरू मन में गुरु गोरख
नाथ की छवि बसा कर उसका नाम जपने लगा ।
तब मन के भीतर की इस छवि के प्रेरणा दी की
सब ठीक होगा । कोई तेरा बाल बांका नही कर
सकता । तू ऐसा कर की राजा से पूछ क्या कुएं में
जल चलाने के लिए तुम्हारी बलि आवश्यक है
या इसके बिन भी काम चल सकता है ?
इसलिए बालक बीरू ने राजा बिरमदेव से पूछा
-"राजा जी ! आपको कुएं में जल उमड़ा हुआ चाहिए
या आप हर सूरत में मुझे मरवाना ही चाहते
हैं ।"
राजा -"हमे तो जल से सरोकार है ।
यदि वह बिना नर - बलि के आ जाए तो हमे ऐतराज़ क्यों होगा ।
यदि नही आया तो हम बलि देने से गुरेज़ न
करेंगे ,क्योंकि आपके माता - पिता ने धन - दौलत से
घर -बार भरकर तुम्हें इसी प्रयोजन के लिए
बेचा है । "
रात भर बीरू गुरु गोरखनाथ जी का नाम जपता रहा । तब वे
भ्रह्मवेला में प्रकट हुए । उसे कहा कि
कुएं पर जाकर अपनी तर्जनी को चीरा लगाकर
एक बून्द रक्त कुएं में गिरा दो । शेष भगवान पर छोड़ दो । "
आरती बाबा बिरफानाथ जी की
बतर्ज़ - ॐ जय जगदीश हरे......
ॐ जय बाबा बिरफानाथ, स्वामी जय बाबा बिरफा।
चरणों में माथ नवाऊं, आ के करो किरपा।।
ॐ जय बाबा.......
बीरपुर में तुम जन्मे, सारी दुनिया भरमे।
भगमीं चोला पाकर, दूजी बार जन्मे।।
ॐ जय बाबा........
जोगन एक कलालिन , जिसने तरक किया।
चिमटा धरती में गाढ़ा , नगर को गरक किया।।
ॐ जय बाबा.......
पंथ सनातन ऊँचा, तेरा झंडा फहराए।
सत्य की महिमा किन्हीं, दुनिया गुण गाए।।
ॐ जय बाबा........
शरण में लेकर गोरख, भव - सागर पार किया।
समाधि धारण किन्हीं शिव-लोक में वास किया।।
ॐ जय बाबा ..........
आपकी किरपा होवे , सच के रस्ते चलें।
पापों को ठुकरावें, जीवन सफल करे।।
ॐ जय बाबा........
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