आज से लगभग 550 वर्ष पूर्व
बाहवा और जम्मू की रियासत पर राजा बीरमदेव राज्य करता था। वैसे तो सब प्रकार के
सुख और ऐश्वर्य उसके पास थे, किन्तु उसके हां संतान न थी। इस कारण से वह सदा चिंता में डूबा रहता । राज
दरबार में बैठे हुए उसका मन राज-काज में न लगता। उधर महलों में उसकी रानी चिंता
में डूबी रहती।
राजा को उसके सलाहकारों ने परामर्श दिया कि यदि इस कढ़ी क्षेत्र के लोगों के
भले के लिए एक कुआं खुदवाया जाए तो उसके पूण्य से उसके घर में अवश्य ही पुत्र जन्म
लेगा। राजा ने ऐसा ही किया। कई कामगार और श्रमिक कुएं की खुदाई पर लगा दिए गए।
काफी गहरा खोदने पर भी पानी का नाम-निशान न मिला। इससे राजा की पुण्य कमाने की
लालसा पर पानी फिर गया।
राजा को निराश देख कर उसके मंत्रियों ने "फिड्डू" नामक चेला को तलब
किया। राजा ने उसे पूछा कि अपने शास्त्रों को देखकर बतलाओ कि पानी किस कारण से रुका
है। कहां क्या खराबी हैं ?"
"फिड्डू नामक
चेला ने अपनी गणना करके कहा--"महाराज, नीचे पाताल में पानी के मंबे पर
एक राक्षस बैठा हुआ है, जिसने कि
पानी रोके रखा है।"
चिंतित राजा ने पूछा-"इसका कोई उपाय भी है कि नहीं?"
फिड्डू - "उपाय है, मगर बड़ा विषम है। पानी रोक कर बैठा हुआ राक्षस बहुत भारी बलि मांग रहा है। वह
मुर्गे या बकरी की बलि से जल का रास्ता नहीं छोड़ेगा। वह मानस-बलि मतलब मानव की बलि
चाहता है। बलि भी किसी साधारण और छोटी जाति के व्यक्ति की नहीं, बल्कि किसी
निर्दोष शरीर वाले गोरे रंग , भूरे रोये और बालों वाले ब्राह्मण बालक की दी जानी चाहिए, तभी कुएं में
जल उमड़ेगा।"
राजा तो संतान प्राप्ति के लोभ में कुछ भी करने को तैयार था, किन्तु महलों
में रानी इस बात पर उद्विग्न हो उठी कि पूण्य कमाने के लिए कुआं खुदवाते हुए, इस काम में
बनी अड़चन को दूर करने के लिए हमें ब्रह्म-हत्या जैसा घोर पाप करना पड़ेगा।