विपत्ति के समय गुरु गोरखनाथ का स्मरण



बालक बीरू को स्मरण आया कि कुछ माह पहले उसने चमत्कारी गुरु गोरखनाथ की सेवा की थी ।
उन्हें जब उसने एक कमंडल भर दूध पिलाया था तो उन्होंने खुश होकर कहा था -"बच्चा ,यह  दूध 
हम पर तेरा उधर रहा । कभी विकट विपत्ति बने या घोर संकट आए - हमें स्मरण करना और बिना 
हिम्मत हारे हमारे नाम का जप करना - हम तेरी चेतना में समस्या का समाधान जगाएंगे । तुझ पर 
गुरु किरपा होगी । तेरे में अलौकिक शक्तियां चली आएगी । तेरे मुख से जो शब्द निकलेगे उन्हें 
विधाता भी झुठला न सकेगा । तेरे मुख से ज्ञानियों जैसे  शब्द निकलेगे। जिसे तू सराहेगा - वह तर 
जायेगा , जिसे तू श्राप देगा वह डूब जायेगा । इतना स्मरण आते ही बालक बीरू मन में गुरु गोरख
नाथ की छवि बसा कर उसका नाम जपने लगा । तब मन के भीतर की इस छवि के प्रेरणा दी की
सब ठीक होगा । कोई तेरा बाल बांका नही कर सकता । तू ऐसा कर की राजा से पूछ क्या कुएं में 
जल चलाने के लिए तुम्हारी बलि आवश्यक है या इसके बिन भी काम चल सकता है ?

इसलिए बालक बीरू ने राजा बिरमदेव से पूछा -"राजा जी ! आपको कुएं में जल उमड़ा हुआ चाहिए 
या आप हर सूरत में मुझे मरवाना ही चाहते हैं ।"

राजा -"हमे तो जल से सरोकार है । यदि वह बिना नर - बलि के आ जाए तो हमे ऐतराज़ क्यों होगा । 
यदि नही आया तो हम बलि देने से गुरेज़ न करेंगे ,क्योंकि आपके माता - पिता ने धन - दौलत से 
घर -बार भरकर तुम्हें इसी प्रयोजन के लिए बेचा है । "

रात भर बीरू गुरु गोरखनाथ जी का नाम जपता  रहा । तब वे भ्रह्मवेला में प्रकट हुए । उसे कहा कि

कुएं पर जाकर अपनी तर्जनी को चीरा लगाकर एक बून्द रक्त कुएं में गिरा दो । शेष भगवान पर छोड़ दो । "