के पास "गोरख-टिल्ला " पहँचे । उनकी वहां आते ही गुरुदेव ने कहा -"हे
बिरफा ! तूझे हमने क्लालीन को रास्ते पर
लाने का आदेश दिया था । "
उनके इतना कहते ही बिरफानाथ जान गए कि गुरुदेव जो जानी -जान हैं
पहले से ही तमाम घटना की जानकारी हैं ।
बिरफानाथ कहा - "गुरुदेव कलाली का टिब्बा तो नास्तिकों का गढ़ बन चूका
था। "
गोरखनाथ -
"यदि किसी जगह नास्तिकों की सँख्या बढ़ जाए तो उसे क्या पूरी
तरह नस्ट करना उचित है ?"
बिरफानाथ - "गुरुदेव! वह
दुष्ट,मुझ को बुरा
-भला कहती तो में सह लेता । जब वह मेरे गुरु की शान में अपशब्द बोलने लगी तो उसके
दुवर्चन मुझ से सहन न हुए । "
गोरखनाथ -"तुझे जब
दीक्षा दी थी तोह सबसे पहले यही कहा था कि सत्य और सहनशीलता का जल चढ़ाने से
जोगमार्ग का पेड़ खूब फलता - फूलता है । "
बिरफानाथ -"गिरुदेव ! वह
दुष्ट जोग - मार्ग को भी गालियां देती थी । वह भोग - मार्ग की प्रशंसकी थी । आपके
इस तुच्छसाधु को भोगवाद और काम की और मोड़ना चाहती थी ।
वह तमाम
नाथों को मार्ग़ से भटके हुए लोग बतलाती थी ।"
गोरखनाथ - "किसी के
विचार हम से भिन्न होंगे उससे बातचीत करके रास्ते पर लाएंगे कि उसे मार ही
डालेगे। "
बिरफानाथ चुप हो गए
गुरु गोरखनाथ बोले -" किसी को बुरे
दण्ड देने का अधिकार उसकी पास है जिसने सृष्टि रचना की है
। जो जन्म देता है उसी ईश्वर के पास मारने का अधिकार भी है ।
साधु - सन्यासी ऐसा करने लगेंगे तोह उनके तपोबल का ह्नास होगा । अगला जन्म
बिगड़ जायेगा । "
बिरफानाथ ने गुरुदेव के पांव पकड़ लिए और कहा -"गुरुदेव ,मेरी भूल
बख्स दीजिये । "
गोरखनाथ कुछ समय के लिए समाधी की दशा में चले गए । फिर
बिरफानाथ से पूछा -"तुम क्या इसी तबाही और बर्बादी की ख़बर देने आये हो ?"
बिरफानाथ -"गुरुदेव !
मैं तो यह कहने आया था की आपका पहला आदेश मैं पूरा क्र चूका हूँ । मेरे लिए आगे
क्या आदेश है ? "
गोरखनाथ - "दूसरा आदेश
यही है कि तुम उसी नगर को वापस जाओ जहाँ से तुम आए हो ।"
बिरफानाथ ने हाथ जोड़ दिए -"हे महानाथ ,मेरी भूल - चूक क्षमा हो । मुझे
अपने चरणों में रहने की आज्ञा दीजिये ।मुझे अपने से दूर मत कीजिये । "
गोरखनाथ बोले - "हे बिरफा ,जिस नगर को तूने तपोबल का
प्रयोग करके उल्टा क्र दिया । वहां के दोषी और निर्दोष दोनों प्रकार के लोग अकाल -
मृत्यु को प्राप्त हुए । उनकी आत्माएं पाताल में
फ़सी हुयी है । वहां उन्हें पाताल के राजा शेषनाग ने बंदी बना रखा है ।कारण कि
मानव जाति या उसकी प्रेतात्माओं का पाताल में प्रवेश निषिद्द है । आपके
द्वारा इस नगर को गर्क करने से
ईश्वर की इच्छा का उलंघन हो रहा है,क्योकि भाग्य
- विधाता ने उनकी किस्मत में पाताल की कैद नही लिखी थी । अपने योग-बल से ऐसा करके तुमने
उन लोगों के भाग्य की लिपि को बदल दिया है ।
यह विधि के विधान का घोर उलंघन है । इसलिए ,तुम्हें वहां जाकर तप करना है ।
श्मशान हो चुके उस नगर में धुना रमा कर जीवन की ज्योति को जाग्रत करना है । वहाँ
रह क्र वे तमाम उपाय करने
हैं जिन से पाताल में बंदी पड़ी प्रेतात्माओं की मुक्ति हो । "
बिरफानाथ ने गुरुदेव
के चरणों में सीस झुका दिया । फिर पूछा -"कोई और आदेश गुरुदेव । "
गोरखनाथ -"आपने भूलवश
जो घोर पाप कमाया है ,उससे आपकी
मुक्ति तभी होगी -जब पाताल की तमाम प्रेतात्माएं मुक्ति पा लेंगी ।
उनकी मुक्ति
होने तक आप कलाली का टिब्बा क्षेत्र को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे । "
पास में बैठे कपला पीर बोले -"बिरफा जी ,आयु में युवा हैं ।
घूमते-घामते कहीं और जा पुहचे और वहां किसी बात पर इन्हें क्रोध आ गया तो क्या
जाने कितने और नगर गर्क क्र दें । "
बिरफानाथ -"ऐसा नहीं
होगा हे ,महामुनि । "
कपला पीर -"तुम्हारा दोष
नहीं है ,हे बिरफानाथ
जी । तुम जिस भूमि
जनमे हो - वह वीरों की भूमि है ।
अपनी आन -बान
और इज्ज़त के लिए वहां के युवा लोग मरने - मारने को उतावले हो उठते हैं । "
गोरखनाथ -"जिन लोगों की
आराध्या शक्ति है वे साधु - सन्यासी बनने पर भी अपने क्रोध पर काबू नहीं पा सकते। शक्ति - पूजा का जितना प्रचलन
बिरफानाथ के मद्रदेश में है उतना और कहां ? "
कपला पीर -"शक्ति के
तमाम रूप अपनी - अपनी ऋद्धि -सिद्धियों सहित डुग्गर पहाड़ों पर विराज रहे हैं ।
उन्हीं के प्रभाववश बिरफा जी ने क्लालीन का नगर गर्क कर दिया । "
बिरफानाथ -"हे गुरुदेव
!आप सर्वज्ञ हैं ,मैं अज्ञानी
हूं। आप सच्चे मार्ग -दर्शक है मैं मार्ग से भटक गया हूं । आप जैसा ऊचित समझे
बतलायें - मैं पूर्ण पश्चताप करूंगा । "
गोरखनाथ -"बेटा बिरफा
!तुम्हें पाप की भूमि को नव -खंड पुण्य -भूमि में बदलना है । वहां सदा के लिए
नाथों का ध्वजा को फहराना है । इसलिए ,तुम्हें वहीँ रहते हुए समाधि
लेनी है । "
जब बिरफानाथ जी टिल्ले से गुरु गोरखनाथ की आज्ञा पाकर कलाली के टिब्बे की और
चले तो कपिला पीर उनके संग दो अनुभवी नाथ भी भेज दिए ताकि कब किया करना है
-इसका
स्मरण बिरफानाथ कराते रहें और किसी गलत निर्णेय पर उन्हें सचेत करें ।