सैनिकों का दल बीरू को बलि-पात्र के तौर
पर खरीद कर जम्मू की "बाहवा नगरी" में ले आया। राजा के सामने पेश किए
जाने पर राजा और उसके दरबारियों ने परखा कि यह बालक त्रिड्डू चेले की कसौटी पर
पूरा उतरता है अथवा नहीं। छान-बीन के बाद पाया गया कि इसमे बलि दिए जाने के संबंधी
समस्त लक्षण पूर्ण हैं।
बलि अमावस्या की रात को दी जानी थी।
अमावस्या को अभी दस दिन शेष थे। इसलिए बालक को तवी तट के पास पहाड़ी के निकट बनाई
गई कुटिया में ठहराया गया। उसकी निगरानी और देख-भाल के लिए चार सैनिकों को तैनात
किया गया। दो सैनिक दिन के समय और दो रात को बालक पर निगाह रखते। राज-महलों से इस
बन्दी बालक के लिए राजसी खाद्य वस्तुएं लाई गई। परंतु, बालक ने उनकी ओर
देखा तक नहीं।